गुमानपुरा में अंजीर की खेती, कृषि विशेषज्ञ की टीम दे रही खेती को लेकर विशेष टिप्स
गुमानपुरा में अंजीर की खेती, कृषि विशेषज्ञ की टीम दे रही खेती को लेकर विशेष टिप्स |
बाप न्यूज| मध्यसागरीय क्षेत्र और दक्षिण पश्चिम एशियाई मूल का एक छोटा पेड़ जो कि पाकिस्तान से यूनान तक पाया जाता है। वह अब मरूभूमि में भी लहलहाने लगा है। अंजीर विश्व के सबसे पुराने फलों मे से एक है। यह फल रसीला और गूदेदार होता है। राजस्थान में भी इस औषधीय पौधे की खेती का नवाचार करने वाले किसानों काे अच्छी आय का लाभ मिल रहा है।आज ऐसे ही एक किसान से आपको रूबरू करवा रहे है, जो खेती में नवाचार करते हुए अंजीर की सफलतापूर्वक खेती कर रहे है। जोधपुर जिले की पंचायत समिति देचू की ग्राम पंचायत गुमानपुरा निवासी गोपालसिंह राठौड़ अंजीर की सफल खेती कर रहे है। उनके 90 बीघा कृषि फार्म हाउस है, जिस पर दो नलकूप है। सिंचित क्षेत्र में परंपरागत खेती का वास्तविक लागत आय का मुनाफा नही मिल रहा था। वे रायड़ा, सरसों, लहसुन, गेंहू, जीरा की खेतीं को प्रमुखता से करते आ रहे है। मिर्च की खेती में उपज कमी हो गई है। सरसो इत्यादि फसल का भी उत्पादन में घटा है। भूमिगत जल भी काफी गहराई में चला गया है। इसलिए खेती के इस संकट से उभरने के लिए नवाचार ही आज की आवश्यकता है। उन्होने भी खेती में नवाचार करने के लिए अंजीर की खेती आजमाने की सोची। गत वर्ष सितंबर में अंजीर की खेती करने का मानस बनाया। बाड़मेर के सिवाना में अंजीर की खेती के बारे में तकनीकी जानकारी ली। इसके बाद 325 रूपये प्रति पौधे के हिसाब से 3500 पौधे खरीदे। इन पौधों के लिए सिंचित भूमि में से ही बीस बीघा भूमि का बगीचा स्थापित किया। उसमें सभी 3500 पौधे लगााये। इनमें करीब 500 पौधे नष्ट हो गए। तीन हजार पौधे पनप गए।
उन्होने
बताया कि पौधे खरीद के समय एग्रीमेंट किया हुआ था कि जो पौधे नष्ट होंगे उनके स्थान
पर गेप फिलिंग में नि:शुल्क पुन: पौधे मिलेगे। ऐसे में नष्ट हुए 500 पौधे वापस मिले,
जिन्हे उस स्थान पर लगा दिये। वर्तमान में उनका 3500 पौधों का अंजीर का बगीचा अपनी
साैंधी महक वातावरण में बिखेर रहा है।
इन
पौधों से अब तक 1200 किलोग्राम अंजीर प्राप्त कर बेच भी दिया है। गोपालसिंह राठौड़
को उम्मीद है कि प्रति पौधा अब 8 से 10 किलोग्राम उत्पादन मिलेगा। यदि प्रति पौधा
800 से 1000 रुपये आय मिलती है, तो उन्हें कुल 3500 पौधे से करीब 25 से 30 लाख रूपये
प्राप्त होंगे। जो कि अन्य फसलों से मिलना मुश्किल है। पौधों में बूंद बंूद सिचांई
पद्धति को अपनाया। यह एक औषधीय खेती है। वे पूर्णतया जैविक पद्धति को अपना रहे है।
कृषि
उद्यान के सहायक कृषि अधिकारी रफीक अहमद कुरैशी ने आसपास किसानो को इस खेती का निरीक्षण
करवाया और खेती में नवाचार के बारे बताया। जैविक खेती के प्रमुख अव्यवों की विस्तृत
जानकारी दी। पंकज दाधीच ने बताया कि बूंद बूंद सिंचाई संयत्र को स्थापित किया, जिस
पर उसे उद्यान विभाग से अनुदान भी मिला।
इनका
कहना:
खेती में फसल के साथ साथ नवाचार में बागवानी खेती भी खेती आय का एक अच्छा विकल्प है। कृषि उद्यानिकी में विभिन्न प्रकार की योजना है। किसान लाभान्वित होकर खेती में नवाचार खेती को प्राथमिकता दे सकते है।
रफीक अहमद कुरैशी, सहायक कृषि अधिकारी- उद्यान