बाप न्यूज़ : अखेराज खत्री | कोइ जमाना था जब आवागमन के रास्ते नही थे। साधन नही थे। ऊंट जिसे रेगिस्तान का जहाज कहा, गया वो ही एक मात्र आवागमन ...
बाप न्यूज़ : अखेराज खत्री | कोइ जमाना था जब आवागमन के रास्ते नही थे। साधन नही थे। ऊंट जिसे रेगिस्तान का जहाज कहा, गया वो ही एक मात्र आवागमन का सुगम साधन था। थार में चरने के लिए खाली भूमि बहूत थी। खातेदारी भूमियों के तारबंदी भी नही थी। स्वतंत्र विचरण का आनन्द लेते ऊंट मतवाले हुआ करते थे। हर वर्ष उनका कुनबा बढ़ता था। एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक खाद्य सामग्री के अलावा घरेलू जीन्स ऊंटों पर ही लाकर पूर्ति करते थे। मगर बदलते मशीनरी समय में तेल से चलने वाले साधनो ने इनकी उपयोगिता कम कर दी। बिना जंगल ऊंटों का कुनबा छोटा होता गया। ऊंट पालक समाज राइका रामूराम बताते है कि कभी एक टोले में 500 से 1000 हजार ऊंट होते थे, जो अब सिमट कर 100 तक आ गए।
राज्य पशु का दर्जा प्राप्त कई ऊंट बीमारियों की चपेट में आकर तो कुछ दुर्घटनाओं में चोटिल होकर खत्म हो रहे। सरकार ने राज्य पशु जरूर घोषित किया मगर सुविधाओं का टोटा है। ऊंटों के लिए अभ्यारण अलग होना चाहिए तभी यह बच पाएगा। ऊंटनी का दूध बहुत उपयोगी है, मगर उचित प्रबंधन के अभाव में यह डेयरी कार्य भी अंतिम सांस ले रहा है। ऊंट पालकों व पशु प्रेमियों ने राज्य सरकार से ऊंट की तरफ ध्यान देने की मांग की है।