प्रताप सिंह टेपू ( एडवोकेट) लोक-कला, संस्कृति की प्रवृत्ति को आवृत्त करती रहने वाली एक सतत् प्रक्रिया है ,जो अभ्यास के प्रयास से जीवित रहक...
प्रताप सिंह टेपू ( एडवोकेट)
लोक-कला, संस्कृति की प्रवृत्ति को आवृत्त करती रहने वाली एक सतत् प्रक्रिया है ,जो अभ्यास के प्रयास से जीवित रहकर आने वाली पीढी़ तक पहुँचती है। हुनरमंद इंसान कला को अपने में सांसों की भाँति जीता है। वह भूलता नहीं कि यह कला कभी भूली भी जाए...। यह कला लोक में उजास बनकर निरन्तर विधिवत प्रयत्नों से आच्छादित रहती है।
मेरे मरू अञ्चल में , जहाँ अभावों की दैन्यता ; आर्थिक विषमता ; निर्देशनों का रूखापन ; प्रोत्साहन का हतोत्साहन ; जीवन की जीवट कसौटी की कठिन कठोर परीक्षाएँ... ऐसे में इन रूखों-सूखों मगरों में जब कोई प्रतिभा प्रकृति तलाश कर तराशती है तो जमाना दंग रह जाता है।
जोधपुर जिले की ब़ाप तहसील का एक छोटा-सा गाँव राणेरी, जो मेरे पैतृक गाँव से महज 10-12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, में मंगणियार परिवार निवास करते हैं।
ये परिवार अपनी परम्परागत लोक-कला के माध्यम से कला को जीवित रखे हुए है। सिन्धी_सारंगी एक बेहतरीन वाद्य_कला है। इस परिवार की पीढियों ने इस कला को पीढी़-दर-पीढी़ जीवित रखा,इसे और अधिक प्राञ्जल रखा, प्रभावी रखा।
आज जब देश के प्रधानमंत्री जी ने अपनी व्यक्तिगत फेसबुक id पर चुनिन्दा पद्मश्री शख्सियतों की छवियाँ साझा की, उनमें से एक तस्वीर लाखा खाँ की थी। भारत की दोनों उच्चस्थ सम्माननीय पदासीन - राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री से मिलता देख ह्रदय प्रसन्नता से प्रसन्न हो गया।
कला की परख और कद्र से आज सम्मान स्वयं सम्मानित हुआ है। पुरस्कार खुद पुरस्कृत हुआ है। वर्षों की एकमेव ध्येयनिष्ठ साधना सम्मानित हुई है। यह कला और आगे बढ़ती रहे, यह चिर-चाह है। मगरा दिल्ली में पहचान पाकर गौरवान्वित हुआ है। इन मगरों में और भी प्रतिभाएँ निखर कर भावी भविष्य की गोद में आँचल पाने को मचलेंगी....अँचल फिर गौरव पाएगा... ये उम्मीदें हमेशा साकार आकार में मुस्कान लिए प्रतीक्षित हैं।
पुनश्च , मगरे के कोहिनूर को अकूत बधाइयाँ😊😊💐