बाप न्यूज | पाली नगर के आदि गौड़ वंशीय ब्राह्मण जो वर्तमान में पालीवाल ब्राह्मण जाति से जाने जाते है। रक्षाबंधन के दिन हुए अपने पूर्वजों क...
मेघराजसर तालाब पर पंडित पंकज जोशी के सानिध्य में आयोजित हुए इस कार्यक्रम में मनसुख पालीवाल, किशनलाल पालीवाल, बाबूलाल पालीवाल, चंपालाल पालीवाल, कन्हैयालाल पालीवाल, तारांचद पालीवाल, मूलचंद पालीवाल, मोहनलाल पालीवाल,जगदीश पालीवाल सांगीदान पालीवाल, अमृतलाल पालीवाल, भूरालाल पालीवाल, ऊंकादास पालीवाल, बालकृष्ण पालीवाल, लीलाधर पालीवाल, मुकेश कुमार पालीवाल, टीकमचंद पालीवाल, ओमप्रकाश पालीवाल, रेखचंद पालीवाल, कमलकिशोर पालीवाल, मगराज पालीवाल, डालचंद पालीवाल, लिखमीचंद पालीवाल, हीरालाल पालीवाल, रवि कुमार पालीवाल, राजेश कुमार पालीवाल, जगदीश पालीवाल, सुनिल कुमार पालीवाल, मांगीलाल पालीवाल, मेघराज पालीवाल आदि मौजुद थे।
इतिहास
कारों का मानना है कि पालीवाल ब्राह्मणों ने पाली रियासत को बसाया था। पालीवाल आदि
विष्णु गौड़ ब्राह्मण थे। पालीवाल शासकों द्वारा पाली पर शासन से ही वे पालीवाल ब्राह्मण
कहलाए। पूर्व में पाली एक समृद्ध और धनी रियासत थी। जिसको पालीवाल ब्राह्मणों ने व्यवसाय
से समृद्ध किया था। पालीवाल ब्राह्मण समाज के लोगों का व्यापार युरोप और अफ्रीका तक
फैला था। इसी समृद्धि को देखकर आस पास के आदिवासी जाति अक्सर लूटपाट करने की कोशिश
किया करते थे। लेकिन वे कभी पालीवाल ब्राह्मणों के आगे सफल नही हो पाए। कहते है कि
पालीवाल ब्राह्मणों की एकता ऐसे थी कि अगर कोई बाहर से गरीब ब्राह्मण आ जाता तो नगर
का प्रत्येक परिवार उसे एक ईंट व एक सोने की मोहर देकर उसे अपने बराबर समृद्ध कर देते
थे।
दिल्ली
शासक फिरोजशाह जब अन्य रियासतों को जीतते हुए पाली पहुंचा तो उसे पता चला कि पाली एक
समृद्ध नगर है। वंहा का शासन पालीवाल ब्राह्मण के अधीन है। उसने पाली को लुटने का फैसला
किया। गुप्तचरों से उसे पता लगा कि पालीवाल धर्म रक्षार्थ कुछ भी कर सकते है। ऐसे में
उन्हें सीधे युद्ध में हराना सम्भव नही है। फिर भी उसने पालीवालो से युद्ध करने का
निश्चय किया। कई दिन युद्ध चला, पर वो पालीवाल ब्राह्मण वीरों से जीत नही सका। फिर
उसने उनका धर्म भ्रष्ट करके छल से जीतने का फैसला किया। इसके लिए उसने पाली के एक मात्र
पेयजल स्रोत लोहड़़ी तालाब में गाय को काट खबर फैला दी और चारों और से घेराबंदी कर
दी। पालीवाल ब्राह्मणों ने पानी के अभाव के चलते मुगलों से अन्तिम युद्ध करने का फैसला
लिया। और निश्चिय किया कि या तो मिटा दो या
धर्म स्वाभिमान खातिर स्वयं मिट जावो। मुगल सेना ने धोखे में रखकर पीठ पीछे हमला कर
युद्ध किया, जिसमें लाखो पालीवाल यौद्धा शहीद हो गए। लाखों की संख्या में मुगल भी मारे
गए। अन्तिम युद्ध में जीत ना दिखती देख मुगल शासक युद्ध समाप्त कर शेष बचे अपने सैनिकों
को लेकर वापस लौट गया। उस युद्ध में शहीद हुए पालीवाल ब्राह्मण योद्धाओं के जनेऊ का
वजन सवा नौ मण हुआ। पीने के पानी का कोई स्त्रोत नहीं रहने तथा इस नरसंहार के बाद शेष
बचे पालीवालो ने पाली छोड़ने का निर्णय सावणी पूर्णिमा, रक्षा बंधन के दिन लिया था।
इसलिए उस दिन से आज दिन तक पालीवाल ब्राह्मण समाज रक्षाबंधन के पर्व को न मनाकर बलिदान
व एकतादिवस के रूप में मनाता है। पालीवाल दिवस को चिर स्थायी बनाये रखने के लिए वर्तमान
में पाली नगर में ही बड़े स्तर पर पालीवाल धाम विकसित किया जा रहा है, जिसका निर्माण
कार्य जारी है। ताकि वर्तमान पीढ़ी पूर्वजों के बलिदान को हमेशा याद रख सकें। पालीवाल
समाज के इतिहास पर गर्व कर सके। पालीवाल ब्रह्मण समाज द्वारा पाली नगर में पूराने बाजार
स्थित धौला चौतरा को विकसित किया गया है।