Bap New s: ( अशोक कुमार मेघवाल) भाई-बहिन के पवित्र प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का त्यौहार पालीवाल ब्राह्मण समाज आज भी नही मनाता है। इस ...
Bap News:(अशोक कुमार मेघवाल)
भाई-बहिन के पवित्र प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का त्यौहार पालीवाल
ब्राह्मण समाज आज भी नही मनाता है।
इस संबंध में शिक्षक नेता हरदेव पालीवाल मंडला खुर्द एवं इतिहासकार ऋषिदत पालीवाल ने बताया कि बताया कि परिहार वंश के शासक लक्ष्मण राव ने अपने गौड़ वंश के गुरु को विक्रम संवत 534 ईस्वी सन् 477 में पाली नगर एक संकल्प पर दान में दिया था जिसके बाद गौड़ ब्राह्मण वंश के लोग पाली नगर में आकर बस गये और तत्पश्चात उनके दूसरे गौत्र भाई और रिश्तेदार भी आकर पाली में रहने लगे और धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती गई।
ऐसा बताया जाता है कि यह दान पत्र आज भी उतर प्रदेश के लखनऊ के राजकीय संग्रहालय में मौजूद है।पाली इतिहास के संबंध में परिहार अथवा पड़ीहार वंश के शासक सूर्यवंशी भगवान श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के वंशज कहे जाते है और इसका उल्लेख भविष्य पुराण आदि ग्रंथों में भी मिलता है। परिहार वंश के शासकों का मुख्य स्थान जालोर जिले में बताया जाता है और इनका मूल रूप से बड़ा गांव जैसलमेर जिले का छायण गांव भी बताया जाता है, इनका राज छठी सदी से 1036 तक रहा है मंडोर में भी इनका शासन रहा था। पाली में जब ब्राह्मण रहे तो अचानक ऐसा क्या घटित हुआ कि इनको एकाएक पाली नगर छोड़ना पड़ा ?
इस संबंध में इतिहासकार ऋषिदत ने बताया कि भारत में मुस्लिम साम्राज्य 1175 ईस्वी से 1206 के बीच रहा है और उससे पहले मोहम्मद गौरी और गजनवी का शासन काल रहा था। भारत में मुगल साम्राज्य की नींव 1526 ईस्वी में शुरू हुई जिसका संस्थापक बाबर था।खिलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन फिरोजशाह 70 वर्ष की आयु में दिल्ली का शासक बना जो 1290 से 1296 ईस्वी तक खिलजी वंश का शासक रहा।
खिलजी वंश के लोग अफगानिस्तान के खिलजी क्षेत्र के निवासी थे इसलिये यह खिलजी वंश के शासक कहलाये। जलालुद्दीन खिलजी ने गुलाम वंश के अंतिम शासक समसुद्दीन की 1290 में हत्या कर दिल्ली का शासन अपने कब्जे में किया, 1292 ईस्वी में जलालुद्दीन खिलजी ने मारवाड़ के रणथंभौर और मंडोर के किलो पर आक्रमण किया इसी समय जलालुद्दीन खिलजी ने पाली नगर की संपन्नता को देख कर उसे लूटने के लिये ईस्वी सन् 1292 विक्रम संवत 1348 में आक्रमण किया। जिस समय राठौड़ वंश के शासक सिहा और उनके पुत्र आस्थान पालीवाल ब्राह्मणों की रक्षा के लिए वचनबद्ध थे।
जलालुद्दीन खिलजी के आक्रमण से पाली नगर तहस-नहस हो गया और यहां रहने वाले गौड़ ब्राह्मण अपने शासक आस्थान के साथ इन हमलावरों से लड़ाई के लिये मैदान में आये और हजारों की संख्या में गौड़ ब्राह्मण पालीवाल वीरगति को प्राप्त हुये जिसके बाद पाली नगर में रहने वाले ब्राह्मण अपने आपको सुरक्षित महसूस नही कर सके।खिलजी आक्रमणकारियों ने पालीवालों के पाली नगर स्थित पीने के पानी के जल स्रोतों में गोवंश को मार कर डाल दिया जिससे पेयजल स्रोत अपवित्र होने से भी ब्राह्मणों ने अपने आपको धार्मिक रूप से भी असुरक्षित महसूस किया।
इसी आक्रमण के समय श्रावणी पूर्णिमा का रक्षाबंधन का त्यौहार भी आया और रक्षाबंधन के त्यौहार के दिन ही पालीवाल ब्राह्मण अपने पूजा - कर्म में भी लगे हुये थे रक्षाबंधन के दिन बड़े स्तर पर हुए नरसंहार से ब्राह्मणों ने अपने धर्म और जाति स्वाभिमान को कायम रखने के लिए पाली नगर को छोड़ना उचित समझा और रक्षाबंधन के दिन पाली नगर को छोड़कर भारत के विभिन्न क्षेत्र में जैसलमेर,गुजरात आदि में जाकर बस गये।
इस प्रकार रक्षाबंधन के पवित्र त्यौहार के दिन पाली नगर को छोड़ने के कारण ही पालीवाल ब्राह्मण रक्षाबंधन का त्योहार नही मनाते है और पाली के गौड़ ब्राह्मण होने से ही पालीवाल ब्राह्मण कहलाये।इतिहासकार ऋषिदत पालीवाल ने यह बताया कि पालीवाल समाज के पंडित शिव नारायण ने भी अपनी पुस्तक में बताया कि अंग्रेज इतिहासकारों ने भी पालीवाल ब्राह्मणों को सर्वोच्च ब्राह्मण बताया है उन्होंने तो यहां तक भी लिखा है कि इन पालीवाल ब्राह्मणों ने मेवाड़ में बसे पालीवालों के साथ बहुत कम व्यवहार रखा।
खिलजी वंश के आक्रमण के बाद जिन पालीवालों ने पाली को छोड़ा उससे पूर्व भी कई ब्राह्मण पाली नगर को छोड़कर राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में और गुजरात के क्षेत्र में जाकर बस गये थे और ये ब्राह्मण भी पालीवाल कहलाते है यही कारण प्रतीत होता है कि रक्षाबंधन से पूर्व जिन ब्राह्मणों ने पाली को छोड़कर किसी अन्य स्थान पर बसना शुरू किया उनके वंशज आज भी रक्षाबंधन मनाते है परंतु पाली नगर के आक्रमण के बाद जिन ब्राह्मणों ने पाली को छोड़ा वह गौड़ पालीवाल ब्राह्मण आज भी भारत के किसी भी हिस्से में रक्षाबंधन का त्यौहार अपने पूर्वजों के बलिदान की याद में नहीं मनाते है।
वर्तमान में इन गौड़ वंश के पालीवाल ब्राह्मण अपने पूर्वजों की याद में रक्षाबंधन के दिन तर्पण का कार्यक्रम करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से मंगलकामना करते है। इस याद को बनायें रखने के लिए पाली सेवा संस्थान द्वारा भी पूर्वजों की नगरी पाली में पालीवाल धाम का निर्माण करवाया जा रहा है। प्रतिवर्ष पूरे भारत के पालीवाल ब्राह्मण आकर प्रतीक स्वरूप अपने पूर्वजों का तर्पण भी करते है ताकि वर्तमान पीढ़ी अपने पूर्वजों के इतिहास को समझकर उससे प्रेरणा ले सके।
ब्राह्मण समाज आज भी नही मनाता है।
इस संबंध में शिक्षक नेता हरदेव पालीवाल मंडला खुर्द एवं इतिहासकार ऋषिदत पालीवाल ने बताया कि बताया कि परिहार वंश के शासक लक्ष्मण राव ने अपने गौड़ वंश के गुरु को विक्रम संवत 534 ईस्वी सन् 477 में पाली नगर एक संकल्प पर दान में दिया था जिसके बाद गौड़ ब्राह्मण वंश के लोग पाली नगर में आकर बस गये और तत्पश्चात उनके दूसरे गौत्र भाई और रिश्तेदार भी आकर पाली में रहने लगे और धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती गई।
ऐसा बताया जाता है कि यह दान पत्र आज भी उतर प्रदेश के लखनऊ के राजकीय संग्रहालय में मौजूद है।पाली इतिहास के संबंध में परिहार अथवा पड़ीहार वंश के शासक सूर्यवंशी भगवान श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के वंशज कहे जाते है और इसका उल्लेख भविष्य पुराण आदि ग्रंथों में भी मिलता है। परिहार वंश के शासकों का मुख्य स्थान जालोर जिले में बताया जाता है और इनका मूल रूप से बड़ा गांव जैसलमेर जिले का छायण गांव भी बताया जाता है, इनका राज छठी सदी से 1036 तक रहा है मंडोर में भी इनका शासन रहा था। पाली में जब ब्राह्मण रहे तो अचानक ऐसा क्या घटित हुआ कि इनको एकाएक पाली नगर छोड़ना पड़ा ?
इस संबंध में इतिहासकार ऋषिदत ने बताया कि भारत में मुस्लिम साम्राज्य 1175 ईस्वी से 1206 के बीच रहा है और उससे पहले मोहम्मद गौरी और गजनवी का शासन काल रहा था। भारत में मुगल साम्राज्य की नींव 1526 ईस्वी में शुरू हुई जिसका संस्थापक बाबर था।खिलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन फिरोजशाह 70 वर्ष की आयु में दिल्ली का शासक बना जो 1290 से 1296 ईस्वी तक खिलजी वंश का शासक रहा।
खिलजी वंश के लोग अफगानिस्तान के खिलजी क्षेत्र के निवासी थे इसलिये यह खिलजी वंश के शासक कहलाये। जलालुद्दीन खिलजी ने गुलाम वंश के अंतिम शासक समसुद्दीन की 1290 में हत्या कर दिल्ली का शासन अपने कब्जे में किया, 1292 ईस्वी में जलालुद्दीन खिलजी ने मारवाड़ के रणथंभौर और मंडोर के किलो पर आक्रमण किया इसी समय जलालुद्दीन खिलजी ने पाली नगर की संपन्नता को देख कर उसे लूटने के लिये ईस्वी सन् 1292 विक्रम संवत 1348 में आक्रमण किया। जिस समय राठौड़ वंश के शासक सिहा और उनके पुत्र आस्थान पालीवाल ब्राह्मणों की रक्षा के लिए वचनबद्ध थे।
जलालुद्दीन खिलजी के आक्रमण से पाली नगर तहस-नहस हो गया और यहां रहने वाले गौड़ ब्राह्मण अपने शासक आस्थान के साथ इन हमलावरों से लड़ाई के लिये मैदान में आये और हजारों की संख्या में गौड़ ब्राह्मण पालीवाल वीरगति को प्राप्त हुये जिसके बाद पाली नगर में रहने वाले ब्राह्मण अपने आपको सुरक्षित महसूस नही कर सके।खिलजी आक्रमणकारियों ने पालीवालों के पाली नगर स्थित पीने के पानी के जल स्रोतों में गोवंश को मार कर डाल दिया जिससे पेयजल स्रोत अपवित्र होने से भी ब्राह्मणों ने अपने आपको धार्मिक रूप से भी असुरक्षित महसूस किया।
इसी आक्रमण के समय श्रावणी पूर्णिमा का रक्षाबंधन का त्यौहार भी आया और रक्षाबंधन के त्यौहार के दिन ही पालीवाल ब्राह्मण अपने पूजा - कर्म में भी लगे हुये थे रक्षाबंधन के दिन बड़े स्तर पर हुए नरसंहार से ब्राह्मणों ने अपने धर्म और जाति स्वाभिमान को कायम रखने के लिए पाली नगर को छोड़ना उचित समझा और रक्षाबंधन के दिन पाली नगर को छोड़कर भारत के विभिन्न क्षेत्र में जैसलमेर,गुजरात आदि में जाकर बस गये।
इस प्रकार रक्षाबंधन के पवित्र त्यौहार के दिन पाली नगर को छोड़ने के कारण ही पालीवाल ब्राह्मण रक्षाबंधन का त्योहार नही मनाते है और पाली के गौड़ ब्राह्मण होने से ही पालीवाल ब्राह्मण कहलाये।इतिहासकार ऋषिदत पालीवाल ने यह बताया कि पालीवाल समाज के पंडित शिव नारायण ने भी अपनी पुस्तक में बताया कि अंग्रेज इतिहासकारों ने भी पालीवाल ब्राह्मणों को सर्वोच्च ब्राह्मण बताया है उन्होंने तो यहां तक भी लिखा है कि इन पालीवाल ब्राह्मणों ने मेवाड़ में बसे पालीवालों के साथ बहुत कम व्यवहार रखा।
खिलजी वंश के आक्रमण के बाद जिन पालीवालों ने पाली को छोड़ा उससे पूर्व भी कई ब्राह्मण पाली नगर को छोड़कर राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में और गुजरात के क्षेत्र में जाकर बस गये थे और ये ब्राह्मण भी पालीवाल कहलाते है यही कारण प्रतीत होता है कि रक्षाबंधन से पूर्व जिन ब्राह्मणों ने पाली को छोड़कर किसी अन्य स्थान पर बसना शुरू किया उनके वंशज आज भी रक्षाबंधन मनाते है परंतु पाली नगर के आक्रमण के बाद जिन ब्राह्मणों ने पाली को छोड़ा वह गौड़ पालीवाल ब्राह्मण आज भी भारत के किसी भी हिस्से में रक्षाबंधन का त्यौहार अपने पूर्वजों के बलिदान की याद में नहीं मनाते है।
वर्तमान में इन गौड़ वंश के पालीवाल ब्राह्मण अपने पूर्वजों की याद में रक्षाबंधन के दिन तर्पण का कार्यक्रम करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से मंगलकामना करते है। इस याद को बनायें रखने के लिए पाली सेवा संस्थान द्वारा भी पूर्वजों की नगरी पाली में पालीवाल धाम का निर्माण करवाया जा रहा है। प्रतिवर्ष पूरे भारत के पालीवाल ब्राह्मण आकर प्रतीक स्वरूप अपने पूर्वजों का तर्पण भी करते है ताकि वर्तमान पीढ़ी अपने पूर्वजों के इतिहास को समझकर उससे प्रेरणा ले सके।