खबरों का चित्रकार अनूठा पत्रकार रचना: प्रतापसिंह टेपू, Adv. खबरों का चित्रकार वह, बनता तब पत्र...
खबरों का चित्रकार अनूठा पत्रकार
रचना: प्रतापसिंह टेपू, Adv.
खबरों का चित्रकार वह, बनता तब पत्रकार वह
परदेस देश विदेश के समाचारों का वह योजक
निष्पक्ष निडर हो गोतों से ,खबरों की सीपें लाता
शब्दों का चितेरा, छिपे सत्य को वह उजागर करता।
परिश्रम की तूलिका से, यथार्थ के केनवास पर
घटना दुर्घटना रचता, कभी खून कभी फूल रचता
हर पल मुस्तैद मन से,घडी़ भर को आराम न करता
कल कल बहता जाता,समाज को पल पल सच बताता।
युद्ध में सैनिकों संग लड़ने,कलम को कटार बनाता
आपदा विपदा में देखो,वह प्राणों की बाजी लगाता
सड़क दफ्तर राजभवन में, बेटोक यह धर्म निभाता
बात तथ्य राज कोई भी, सामने यह बेबाक ही लाता।
महामारी से लोहा लेने,जान पर अपनी खेल रहा
संक्रमण पर अतिक्रमण कर,सब हाल दे ही रहा
मौत को महबूबा बनाकर,संघर्ष से हाथ मिला रहा
सलाम आभार दिल से, 'प्रताप' कृतज्ञता जता रहा।
हर हलचल को देखकर, रंग उसमें सच्चाई के भरना
निर्भय होकर आगे बढ़ना, हकीकत को दर्पण करना
योद्धा हो जागते सपूत तुम हो, तभी भागता कोरोना
न सोते सुस्ताते हो , जागना जगाना यह मंत्र ही बिछौना।
मैं करता हूँ कद्र देखो, आभार में भाव अपूर्व
सदा रहो लेखनी के साथी, सच दिखे अभूतपूर्व
दबना नहीं झुकना नहीं, तासीर यह रहे अनुपम
पत्रकार तुम चित्रकार हो, समाज के चितेरे तुम।
परदेस देश विदेश के समाचारों का वह योजक
निष्पक्ष निडर हो गोतों से ,खबरों की सीपें लाता
शब्दों का चितेरा, छिपे सत्य को वह उजागर करता।
परिश्रम की तूलिका से, यथार्थ के केनवास पर
घटना दुर्घटना रचता, कभी खून कभी फूल रचता
हर पल मुस्तैद मन से,घडी़ भर को आराम न करता
कल कल बहता जाता,समाज को पल पल सच बताता।
युद्ध में सैनिकों संग लड़ने,कलम को कटार बनाता
आपदा विपदा में देखो,वह प्राणों की बाजी लगाता
सड़क दफ्तर राजभवन में, बेटोक यह धर्म निभाता
बात तथ्य राज कोई भी, सामने यह बेबाक ही लाता।
महामारी से लोहा लेने,जान पर अपनी खेल रहा
संक्रमण पर अतिक्रमण कर,सब हाल दे ही रहा
मौत को महबूबा बनाकर,संघर्ष से हाथ मिला रहा
सलाम आभार दिल से, 'प्रताप' कृतज्ञता जता रहा।
हर हलचल को देखकर, रंग उसमें सच्चाई के भरना
निर्भय होकर आगे बढ़ना, हकीकत को दर्पण करना
योद्धा हो जागते सपूत तुम हो, तभी भागता कोरोना
न सोते सुस्ताते हो , जागना जगाना यह मंत्र ही बिछौना।
मैं करता हूँ कद्र देखो, आभार में भाव अपूर्व
सदा रहो लेखनी के साथी, सच दिखे अभूतपूर्व
दबना नहीं झुकना नहीं, तासीर यह रहे अनुपम
पत्रकार तुम चित्रकार हो, समाज के चितेरे तुम।