Article: नारी इस संसार को, संसार की सबसे अनुपम और श्रेष्ठतम कृति भेंट है प्रकृति की। परमेश्वर ने अपनी करूणा, प्रेम, समर्पण, शुचिता, सौन...
इस संसार में मेरी
जब आँख खुली, तब मैंने
सबसे पहले माँ को देखा। मेरे जीवन का वही आधार है। संसार को इसी माँ ने बनाया, पोषण
दिया और अपने कलेजे की कोर के अपरिमित हेज और हेत से पल्लवित किया। माँ के चरण की
शरण मानव के लिए सदैव तीर्थ से बढ़कर, मुक्ति से बढ़कर, सुख और समृद्धि का एकमेव
अकूत साधार रहेगा। प्रेम, ममता,
ह्रदय में सुरक्षित रखकर नवजात से सुजात इन्सान इसी माँ ने बनाया। सृष्टि की समस्त
शक्ति, विद्या, पालनहार देवियाँ नारी-रूप में माँ है। जगतजननी देवी को माँ और
स्तुति में तू तक का सामीप्य भरा सम्बोधन है। नारी, माँ के
स्वरूप में निर्माता है। इस सर्वभौम पर माँ का पहला हक है। मेरा सबसे पहले प्रणाम
माँ को है। एक भरोसा, एक माँग, एक निश्वास, एक सीख, एक सपना ...यह सब नि:संकोच माँ
की गोद में पनपता है। आँख बन्द करने पर, निस्तब्ध नीरवता में परमेश्वर को याद किया,
तो माँ का चेहरा नजर आया। माँ में परमात्मा को पाया। बस, मुझे यही भाव भाया...माँ
खुश, तो परम सत्ता प्रसन्नता में मुळक उठी..।
रिश्तों का गहना
नारी में… मुस्काती बहना, सम्बन्धों
का मजबूत स्तम्भ…हँसती बहना, परवाह की पुलकित वाह… उल्लासित बहना, स्नेह
की अटूट नेह-डोरी… खिलती बहना, विश्वास की अनोखी कोंपल… आँख मिलाती बहना,
प्रार्थना की मौन महक-चहकती बहना, हक और अधिकार की अलिखित कहानी…हर्षित बहना...!!बहन सबसे बडी़
समृद्धि है जीवन की। रिश्तों का प्राण है,
जीवन की मिठास है…बहना। खुद का बचाकर देने
वाली, कदम हटा सभी का सोचने वाली, परिवार को बाँधने वाली, भाई को अमर करने वाली
बहना हमारे परिवार-सृष्टि की बेजोड़ पुनीत कृति है। राखी की की वह भावना इतनी मजबूत कि.. सक्षमता और
सामर्थ्य को सारथी बना गई। उस बहना को मेरे स्निग्ध स्नेह की दुलार भरी चुनरी..।
गोद का सुख, आँगन
का दुलार, थपथपी का अहसास, परी-सी सुकुमारता,
मुस्कान का अक्स, प्यार की फुहार,
कोमलता का रूप, लाज की नाज, खिलखिलाहट का
निनाद, कलेजे के नजदीक का स्पन्दन, उर के
निलय की लय, घर की रोशनी, हर पल की सांस...महसूसता अहसास..बेटी..! बेटी पूर्णता है।
बेटी घर काव्य है। शुद्ध आराधना है। खुशियों का साकार आकार है --बेटी। बेटी माँ-बाप की
नब्ज है। घाटे-नफे का हिसाब है। विश्वास की अकूत पूञ्जी है। माँ का भरपूर बल और
पिता की आँखों का स्नेहिल पावन नाज, मान है बेटी। कुल का दीपक और
उम्मीदों का उजास है। तनाव की दवा और उदासी का उड़न-छू जादू है बेटी। माँ-बाप के
संस्कारों की उन्नत उन्नति है बेटी। सच कहूँ तो बेटी
से परिवार की साँस है, मस्तानी सुबह और सुहानी साँझ है, झिलमिलाती रात है। नारी का
यह आगोश भरा रूप अनुपम है, अद्भुत है।
नारी_में_समर्पण_मूर्त_जीवनसंगिनी...!!
जहाँ सारे भेद मिट
जाए, हद बेहद निजी हो जाए, प्रेम पूर्णता को पा जाए, दूरियाँ दरिया बन मचल जाए,
अहसास निश्वास को पार कर जाए, आत्मिक एक्यता अभिभूत हो जाए, सौन्दर्य यौवन की आभा बन जाए, आकर्षण मुग्ध हो
जाए, अंगीकार भाव खिल-खिल जाए.....तब नारी के स्वरूप में समर्पण का अनोखा, बेजोड़, इकलौता
मूर्त-रूप हाथ थामता है..जीवनसाथी के रूप में…जीवनसंगिनी बनकर। इस रूप में कभी
माँ की परवाह, कभी बहना का स्निग्ध नेह और बेटी की निर्भरता भरा प्यार... सब देखने
को मिलता है। जीवन भर का गुलाबी
अहसासों का साथ, अंगीकार करने का कौशल, कर्म के मर्म को धर्म मानकर खपना, न थकने न
हारने वाली शक्ति...पत्नी के रूप में पुरूष को पूर्ण करती है। सौन्दर्य की अपूर्व
अधिष्ठात्री..! सबसे करीबी मित्र, सबसे विश्वसनीय सलाहकार, लक्ष्मी रूप में संचयनी
और अन्नपूर्णा के रूप में आरोग्य निधि बनकर पोषण, रूप और सुन्दरता से भटकाव रोककर,
सहजता से प्रेम लुटाकर बहकाव से रोकने की अतुल क्षमता लेकर जीवन को सुख, आनन्द और
परिणय से भर देती हो। मर्यादा की
लक्ष्मण रेखा इस रूप का निज-रूप है। आओ, हम साथ का, साथ लेकर रिश्तों को मधुर करने
की ओर चलें। नारी..सच्चे
मायनों में न्यारी है, अनुपम और अद्वितीय कृति है परमेश्वर की..। सम्मान और मान का आधार है। इनकी खुशी,उन्नति और
समर्पण से ही संसार सुख व समृद्धि में वृद्धि कर पाया है, कर पाएगा भी।
नारी के प्रति एक
स्वरूप को स्निग्ध भाव से वन्दन..!!
(Bap News के लिए प्रताप सिंह टेपू, एडवाेकेट
की कलम से)